आस….
May 11, 2023
आशियानों को बनते — बिखरते,
शख्सियतों को बदलते देखा…
उम्र — तजुर्बे की सीढ़ी को बेइज्ज़त होते महसूस किया,
रिश्तों को मोबाइल की स्क्रीन पर सिमटते जाना…
जिन चीज़ों के असल में ज़्यादा माइने नहीं,
उन्हें कीमती बनते देखा…
मालूम नहीं आगे कहाँ जाएँगे पर,
वक़्त से डर सा लगता है…
जिस ओर चल पड़े है… क्या सुकून के एहसास तक पहुँच जाएँगे?
उस प्यार — मोहब्बत को वापस क्या दिलों में बसा पाएँगे?
दूर…इक लौ जलती तो नज़र आती है…
आस है कि उसी लौ की रौशनी से आने वाले वक़्त को जग-मगाएंगे ।